मित्रः प्रमीतेस्रायते।
•मित्रः प्रमीतेस्रायते। (निरुक्त: यास्क)
-मित्र मृत्यु से बचाता है।
मित्र = वायु,
प्रमीति: = प्रमरणम् ततः । (जो मृत्यु से )
त्रायते = बचावे ।
• मित्र अर्थात वायु कैसे रक्षा करती है या बचाती है?
- इसका उत्तर भी उसी ग्रन्थ में हमें मिलता है, क्योंकि उसी वायु ने पृथ्वी और द्युलोक को धारण किया हुआ है। तभी तो यह पृथ्वी , सूर्य की परिक्रमा करते हुए कहीं गिरती या भटकती नहीं है ।
- प्राणवायु रूप से हमारा शरीर जीवित रखती है, अतः मित्र है।
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