बहुत सुन्दर शब्द है, यह संन्यास । आजकल इस शब्द का अर्थ हम घर, धन इत्यादि का त्याग ही सन्यास समझते हैं । श्रीमद्भगवद्गीता के अठारहवें अध्याय के दूसरे श्लोक में श्री कृष्ण जी संन्यास के बारे में अर्जुन से कहते हैं- " काम्यानां कर्मणां न्यासं संन्यासं " अर्थात् भौतिक इच्छा पर आधारित कर्मों के परित्याग को संन्यास कहा जाता है । यज्ञदानतपः कर्म न त्याज्यमिति - यज्ञ, दान तथा तपस्या के कर्मों का कभी त्याग नहीं करना चाहिए । संन्यास लेने का कब फायदा है? संन्यास लेने का तब फायदा है, जब आपकी पूर्व जन्म की स्मृति आपको आ जाए । क्यूंकि बिना स्मृति के , बिना ज्ञान के, बिना अनुभव के संन्यास लेने का कोई फायदा नहीं, बिना शास्त्र ज्ञान के, बिना वेद ज्ञान के प्रकाश के इस पथ पर चलना कठिन है । किसको पूर्व जन्म की स्मृतियाँ मिलि ? व्यास पुत्र शुकदेव जी, गङ्गा पुत्र भीष्म जी, जड़ भरत जी, काक भुशुण्डी जी इत्यादि । निष्कर्ष - संन्यास लेने का तब फायदा है, जब आपकी पूर्व जन्म की स्मृ