गीता के उपदेश अमृत
महाभारत के युद्ध में अर्जुन के विषण्ण ह्रदय को देखकर उसके कर्तव्यबोध के लिए भगवान् कृष्ण द्वारा जो उपदेश दिया गया , वह ही "श्रीमद्भगवद्गीता" इस नाम से प्रसिद्ध है। गीता में भगवान् कृष्ण द्वारा प्रायः सभी मनुष्यों के आवश्यक कर्त्तव्य का प्रतिपादन है। गीता में जो उपदेश हैं , उनमें से मुख्य यह हैं - -यह आत्मा अजर (बुढ़ापा से रहित ), अमर (मृत्युरहित) है। न हि उत्पन्न होता है , और न हि मरता है। किसी भी प्रकार से इसका नाश नहीं होता। -जैसे पुराने वस्त्र को उतारकर नए वस्त्र धारण किये जाते हैं ,वैसे ही शरीर को भी समझना चाहिए। वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि। तथा शरीराणि विहाय जीर्णा न्यन्यानि संयाति नवानि देही।।2.22। -मनुष्य अपने कर्म अनुसार ही पुनर्जन्म पाता है। जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च। तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि।।2.27।। -मनुष्यों द्वारा सदा निष्काम भावना से कर्म करा जाना चाहिए। अपने धर्म (शुभ कर्म ) को कभी त्यागना नहीं चाहिए। कर्मण्येवाधिकारस्त